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पेड़ की आत्मकथा – द्वितीय भाग (पर्यावास और पेड़-पौधे)

नमस्कार, आदाब, मैं पेड़ दादा एक बार फिर से पेड़-पौधों की रोचक दुनिया में आप सभी पाठक गणों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। हालाँकि अबकी बार आपसे मुलाकात करने में काफी समय लगा जिसके लिए मैं आपसे क्षमाप्रार्थी हूँ. तो दोस्तों अभी तक आपने पूरे संसार में फैले हुए मेरे परिवार, भाई बंधुओं और मेरे पूर्वजों के बारे में जानकारी प्राप्त कर चुके हैं. 

अब मैं आपको हमारे परिवार के प्रत्येक सदस्य से जुड़े महत्वों से आपको अवगत करता हूँ. यूं तो जीव धारियों के लिए ऐसी कई आवश्यकताएं हैं जिन्हें हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परिपूर्ण करते हैं. इन्ही आवश्यकताओं से एक है पर्यावास. अब आप यह सोच रहे होंगे की ये पर्यावास क्या है? तो धीरज धरिये जनाब मैं आपको इसके बारे में भी बताता हूँ. 

पर्यावास दो शब्दों से मिलकर बना है परि अर्थात आस-पास या चारों ओर तथा वास अर्थात रहने योग्य. अर्थात पर्यावास का अर्थ है ऐसा क्षेत्र या स्थान जहाँ पर कोई जीव-जंतु या पादप प्रजाति निवास करता है. आप ये भी कह सकते हैं की यह एक ऐसा प्राकृतिक या भौतिक पर्यावरण है जहाँ पर सजीव प्रजाति निवास करती है और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उस वातावरण से प्रभावित भी होती रहती है. उदाहरण के लिए: उत्तर प्रदेश में स्थित एक मात्र राष्ट्रीय उद्यान "दुधवा" में साल के वन और यहाँ का वातावरण इस क्षेत्र में पाए जाने वाली हिरणों की ५ प्रजातियों को एक सुखद एवं सुरक्षित पर्यावास प्रदान करते हैं.

क्या आप जानते हैं की एक छोटा सा पौधा या एक बड़ा विशाल वृक्ष कई जीव-जंतुओं एवं अन्य कीट-पतंगों के साथ-साथ सूक्ष्म जीवों को भी निवास करने के लिए पर्याप्त स्थान प्रदान करता है. परन्तु हम सिर्फ यही जानते हैं कि वृक्ष या पेड़-पौधे केवल पक्षियों को ही आश्रय या पर्यावास प्रदान करते हैं, जबकि ऐसा नहीं है. 

यदि आपको जानना है कि हमारे भाई बंधू किन-किन जीवों को आश्रय प्रदान कराता है तो एक काम कीजिये कभी हमारे किसी एक सदस्य के पास जाइये और गौर से हमारे जड़ों कि ओर देखिये आपको असंख्य छोटे-छोटे कीड़े मकौड़े, चीटियाँ इत्यादि दिखाई देंगी. अब एक काम करिए जरा हमारे तने पर नजर दौड़ाइए आपको फिर से कई प्रकार के अन्य जीव-जंतु दिखाई देंगे. और सबसे अहम् बात कि आपको हमारी प्यारी सी छोटी सी गिलहरी बिटिया भी दिखाई देगी जो एक डाल से दुसरे डाल पर हमेशा अटखेलियाँ करती दिखाई देती है. और क्या आपको हमारे पत्तों पर कैटरपिलर दिखाई नहीं दे रहा. वो भी तो हम पर ही आश्रित है. इसके अलावा आपको दो पत्तो के बीच जाल बनाते हुए मकड़ों कि कई प्रजातियाँ भी दिखाई दे जाएँगी.

हम तो अनेक पौधों को भी आश्रय प्रदान करते हैं, जैसे ऑर्किड कि कई प्रजातियाँ हम पर ही आश्रित रहती हैं, इन पौधों को सामान्य भाषा में हम अधिपादप कहते है. और तो और हम कई मधुमखियो और पक्षियों को भी तो आश्रय प्रदान करते हैं. हम आश्रय देने में इतने आगे हैं कि मरने के बाद भी कई जंतु हमारे खोखले तनों में अपना आश्रय ढूंढ लेते हैं. आपने कई फफूंदों को उगते हुए देखा ही होगा.

आइये अब मैं बूढा आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ क्या एक विशिष्ट पर्यावास, जीव-जंतुओं एवं जैव प्रजातियों को केवल आश्रय प्रदान करता है? हो सकता है कि आप कहें हाँ? परन्तु ये गलत है. यह उन जैव प्रजातियों के लिए आश्रय के साथ-साथ भोजन और जल तथा रहने के लिए अनुकूल वातावरण भी प्रदान करता है, जिससे की ये प्रजातियाँ वहां पर न केवल सुरक्षित ढंग से निवास कर सकें बल्कि अपना पूर्ण रूप से विकाश कर सकें और प्रजनन कर के अपना वंश आगे बढ़ा सकें. 

तो देखा आपने की हमारे परिवार के सदस्य किस प्रकार से विभिन्न जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों को रहने के लिए पर्याप्त और सुरक्षित आवास प्रदान करते हैं. अरे जनाब ये तो बस शुरुआत मात्र है. आगे-आगे देखिये मैं आपको और किन-किन जानकारियों से आपका परिचय करता हूँ. जैसे किस प्रकार से हम वायु को शुद्ध रखते हैं, किस प्रकार से हम प्रकृति में संतुलन बनाये रखते है इत्यादि-इत्यादि. 

कैसे? ये सब जानने के लिए के लिए यूं ही पढ़ते रहिये "प्रकृति मित्र" ब्लॉग (http://akd6.jagranjunction.com/)!!

तब तक के लिए धन्यवाद!!

अलविदा दोस्तों.....

आपका पेड़ दादा

प्रस्तोता: आशुतोष कुमार द्विवेदी "आशु"

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Comment

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Comment by GOPI KANTA GHOSH on July 1, 2012 at 9:51am

Bahoot sundar

Comment by Dr. K.S. Negi on June 28, 2012 at 3:19am

Bahut khoob Ashutosh,

Jis tarah se aapne ek ped ki aatmkatha ko shabdo me likha hai.........wo ek saccha prakitipremi hi kar sakta hai........ meri taraf se tumhe salaam.....

keep it up on way of "Environmental Conservation"

Kamal

Comment by aakash Verma on June 27, 2012 at 8:25am

Great sir....I really appreciate to quote some words in Matrabhasha (HINDI)............

akash

Comment by Rajesh Kushwaha on June 27, 2012 at 7:57am

nice sir........i really admire from you.............

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