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अर्थ विटनेस: जलवायु परिवर्तन पर कैमरे की गवाही

कोयले के अभिशाप की महज धुंधली सी झलक है शिकारी बैगा की आपबीती. छत्तीसगढ़ का यह बाशिंदा प्रकृति की गोद में जी रहा था कि अचानक विकास के नाम पर पेड़ों का कटना और कोयले की खदानों ने इसकी और इसके आसपास की जिंदगियों को तितर-बितर कर दिया. जलवायु परिवर्तन के कारण उपजे इस संकट को फिल्माया है आकांक्षा जोशी ने अपने वृत्तचित्र ‘अर्थ विटनेस: रिफ्लेक्शन्स ऑन द टाइम्स एंड द टाइमलेस’ में. अब तक कई पुरस्कारों से नवाज़ी जा चुके इस वृत्तचित्र की कहानी एक पिता, एक शिक्षक, एक चरवाहे और एक किसान के इर्द-गिर्द घूमती है.

फिल्म शुरु होती है छत्तीसगढ़ राज्य के स्थानीय निवासियों के देशज पारिस्थितिकी तंत्र को समझने से। वहां से गुजरात के शुष्कप्रदेश से गुज़रते हुए नागालैंड के पर्वतीय और सुंदरवन के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को दिखाती है और लौटती है उन्हीं चरित्रों और उसी पारितंत्र में ताकि वहां जबरिया लादे गए विकास की पड़ताल कर सके.

थोपे गए विकास ने किस तरह से प्रकृति के इन सहज मित्रों के जीवन और जीवनयापन के तरीकों को तहस-नहस करके रख दिया है!

फिल्म का पहला चरित्र शिकारी बैगा अपनी आपबीती सुनाते हुए कहता है कि वनोन्मूलन के चलते धीरे-धीरे नदियां सूख रही हैं और लोग बेघर हो रहे हैं. वह प्रतिनिधित्व करता है छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश राज्यों की बैगा और गोंड जनजातियों का, जो पूरी तरह से वन-आश्रित जनजातियां हैं. गौर तलब है कि मध्यप्रदेश के सिंगरौली में बिजली संयंत्रों के लिए तेज़ी से जंगल काटे जा रहे हैं. इससे न केवल जनजातियां विस्थापित हो रही हैं, बल्कि उनकी रोज़ी-रोटी भी प्रभावित हो रही है. इन क्षेत्रों में इंसानों के साथ-साथ वन्यजीवन पर भी कोयले का अभिशाप साफ नज़र आता है.

एक अन्य चरित्र को आशंका है कि आने वाले 15 सालों में वह बेघर होगा क्योंकि नदियां उसका घर बहा ले जाएंगी. गौर तलब है कि वनों के विनाश के कारण नदियों और उनके साथ-साथ समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है. वनोन्मूलन के कारण देश के कुछ हिस्सों की औसत वृष्टि पर खासा असर पड़ा है. बेवक्त बारिश और ज़रूरत के समय अनावृष्टि ने खेती-किसानी को बुरी तरह से प्रभावित किया है.

ध्यान देने की बात है कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश प्राकृतिक संपदा के मामले में देश के चुनिंदा सबसे समृद्ध राज्यों में आते हैं. वहीं विंडबना है कि यही प्रकृति राज्य के स्थानीय लोगों को विस्थापन की ओर भेज रही है. सरकार की इन राज्यों को पावर-हब बनाने की होड़ में अंधाधुंध जंगल काटे जा रहे हैं और कोयले की खदानों के लिए गांव के गांव विस्थापित हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ में बॉक्साइट का कारखाना स्थापित करने के लिए विस्थापन तो मध्यप्रदेश में कोयले की खदानों के लिए जनजातियों का विस्थापन किसी से छिपा नहीं है.

लगातार वनोन्मूलन के कारण इन राज्यों की ज़मीन चट्टानी हो रही है और विस्फोट के कारण जलस्तर नीचे जा चुका है. छत्तीसगढ़ में स्थानीय वन विकास एजेंसी ने सागौन के पेड़ लगाने के लिए जंगल काटने और साफ करने के आदेश दिए हैं. यह आदेश कितने ही जाने-अनजाने पेड़-पौधों, औषधीय पेड़ों, फलदार वृक्षों और जलाऊ लकड़ी को नष्ट कर देगा. यहां सागौन लगाया जाएगा और उसे भी कुछ वक्त बाद फर्नीचर बनाने के लिए काट दिया जाएगा. ये वो जंगल और वो ज़मीन है, जिसपर बैगा जनजाति जीवनयापन के लिए आश्रित है. वहीं सिंगरौली के बाशिंदों का दर्द न सिर्फ विस्थापन बल्कि बेरोज़गारी और अपनी संस्कृति से दूरी भी है. इसके अलावा वनोन्मूलन के चलते वन्यजीवन भी बुरी तरह से खतरे में आ गया है.

वनोन्मूलन के खिलाफ़ ग्रीनपीस ने भी अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर मुहिम छेड़ रखी है. अपने उत्पादों की पैकेजिंग के लिए वर्षावनों की कटाई का दोषी फास्टफूड केंद्र केएफसी भी ग्रीनपीस के निशाने पर है. संस्था की अपील है कि केएफसी वनोन्मूलन छोड़कर वैकल्पित तरीकों को सहारा ले ताकि जनजीवन और वन्यजीवन सुरक्षित रहें. अधिक जानकारी के लिए यह लिंक चटकाएं- http://www.greenpeace.org/india/hi/6/blog/40707/.

नागालैंड के सेनो ने अंतिम शब्द दिए- जीवनयापन के लिए उत्पादन और लाभ के लिए उत्पादन में संतुलन ज़रूरी है वरना चीजें बेकार और बेकाबू होती चली जाएंगी. ये शब्द इशारा करते हैं वैकल्पिक ऊर्जा की ओर जाने का. कोयले को छोड़कर सौर और जलीय ऊर्जा का इस्तेमाल करना हमें न सिर्फ विकास बल्कि पर्यावरण के भी करीब लाता है.

जोशी अपने कैमरे के ज़रिए विषय के साथ पूरा न्याय करती हैं. वे दर्शकों पर जबरिया कोई निष्कर्ष थोपने की बजाए वास्तविकता को जस का तस उतारती हैं ताकि दर्शक ख़ुद इससे रुबरू हो सकें. उनके चरित्र डूंगरा, बैगा, सेनो और सुखदेव भी जलवायु परिवर्तन के शहीदों की तरह नहीं दिखते, बल्कि सीधे-सपाट ढंग से अपनी ज़िंदगी की दास्तान सुनाते हैं. पर्यावरण को दोयम रखने वालों के लिए इस फिल्म को देखना आंखें खोल देने जैसा अनुभव साबित हो सकता है.

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Comment by GOPI KANTA GHOSH on June 15, 2012 at 1:50am

Wonderful analysis...it must be shared

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